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93. जम्हा उवरिट्ठाणं सिद्धाणं जिणवरेहिं पण्णत्तं।
तम्हा गमणट्ठाणं आयासे जाण णत्थि त्ति।
अव्यय
चूँकि
जम्हा उवरिट्ठाणं सिद्धाणं जिणवरेहिं पण्णत्तं
ऊपर, स्थान सिद्धों का जिनवरों के द्वारा कहा गया इसलिए गति और स्थिति आकाश के कारण जानो
तम्हा
[(उवरि) अ-(ट्ठाण) 1/1] (सिद्ध) 6/2 (जिणवर) 3/2 (पण्णत्त) भूकृ 1/1 अनि अव्यय [(गमण)-(ट्ठाण) 1/1] (आयास) 7/1+3/1 (जाण) विधि 2/1 सक [(णत्थि)+ (इति)] णत्थि (अ) = नहीं है इति (अ) = इस प्रकार
गमणट्ठाण आयासे
जाण णत्थि त्ति
नहीं है इस प्रकार
अन्वय- जम्हा सिद्धाणं उवरिट्ठाणं तम्हा गमणट्ठाणं आयासे णत्थि त्ति जिणवरेहिं पण्णत्तं जाण।
. अर्थ- चूँकि सिद्धों का (निवास) स्थान (लोक के) ऊपर (है) इसलिए गति और स्थिति आकाश (द्रव्य) के कारण नहीं है। इस प्रकार जिनवरों के द्वारा कहा गया (है) (तुम) जानो। 1. यहाँ सप्तमी विभक्ति का प्रयोग तृतीया अर्थ में हुआ है।
(हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137) पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार
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