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142. ण वसो अवसो अवसस्स कम्म वावस्सयं ति बोद्धव्वा।
जुत्ति त्ति उवाअंति य णिरवयवो होदि णिज्जुत्ती॥
नहीं
वसो
*कम्म
अव्यय (वस) 1/1 वि
वश अवसो (अवस) 1/1 वि
अवश अवसस्स (अवस) 6/1 वि
अवश का (कम्म) 1/1
कर्म वावस्सयं ति [(वा)+(आवस्सयं) + (इति)] वा (अ) = तथा
तथा आवस्सयं (आवस्सय) 1/1 वि आवश्यक
इति (अ) = ऐसा ऐसा बोद्धव्वा (बोद्धव्व) विधिकृ 1/1 अनि समझी जानी चाहिये जुत्ति त्ति
[(जुत्ती) + (इति)] जुत्ती (जुत्ति) 1/1
इति (अ) = ऐसी उवाअंति [(उवाअं)+ (इति)]
उवाअं (उवाअ) 2/1 इति (अ) = ऐसा
ऐसा अव्यय
और णिरवयवो (णिरवयव) 1/1 वि अशरीरी
(हो) व 3/1 अक होता है णिज्जुत्ती (णिज्जुत्ति) 1/1
व्याख्या ___अन्वय- ण वसो अवसो जुत्ति त्ति बोद्धव्वा अवसस्स कम्म वावस्सयं ति उवाअंति य णिरवयवो होदि णिज्जुत्ती।
अर्थ- (जो) (जीव) (अन्य के) वश नहीं (है) (वह) अवश (है) ऐसी युक्ति समझी जानी चाहिये तथा अवश का (ध्यानस्वरूप) कर्म आवश्यक (है) ऐसा उपाय (जानो)। (इससे जीव) अशरीरी (सिद्ध) होता है। (ऐसी) व्याख्या
उपाय
होदि
नोटः
प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517) संपादक द्वारा अनूदित
नियमसार (खण्ड-2)
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