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________________ 133. जो दु धम्मं च सुक्कं च झाणं झाएदि णिच्चसो । तस्स सामाइगं ठाइ इदि केवलिसासणे ॥ जो दु धम्मं च सुक्कं P झाणं झाएदि णिच्चसो तस्स सामाइगं ठाइ इदि केवलसासणे (ज) 1 / 1 सवि अव्यय (धम्म) 2/1 अव्यय (सुक्क) 2/1 अव्यय ( झाण) 2 / 1 (झा झाअ) व 3 / 1 सक - 'अ' विकरण अव्यय (त) 6/1 सवि ( सामाइग) 1 / 1 (ठा) व 3/1 अक अव्यय (केवलिसासण) 7/1 जो पादपूरक धर्म और शुक्ल पुनरावृत्ति भाषा की पद्धति ध्यान को ध्याता है सदैव उसके सामायिक स्थिर होती है इस प्रकार केवली के शासन में अन्वय- जो दु धम्मं च सुक्कं च झाणं णिच्चसो झाएदि तस्स सामाइगं ठाइ इदि केवलिसासणे । अर्थ - जो (साधु) धर्म और शुक्ल ध्यान को सदैव ध्याता है उसके (समभावरूप) सामायिक स्थिर होती है । इस प्रकार केवली के शासन में (कहा गया है)। नियमसार (खण्ड-2) (73)
SR No.002305
Book TitleNiyamsara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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