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120. सुहअसुहवयणरयणं रायादीभाववारणं किच्चा।
अप्पाणं जो झायदि तस्स दुणियम हवे णियमा
शुभ-अशुभ वचन कौशल को
किच्चा
सुहअसुहवयणरयणं [(सुह) वि-(असुह) वि-
(वयण)- (रयणा) 2/1] रायादीभाववारणं [(राय)+(आदीभाववारणं)]
[(राय)-(आदी-आदि)- (भाव)-(वारण) 2/1]
(किच्चा) संकृ अनि अप्पाणं (अप्पाण) 2/1
(ज) 1/1 सवि झायदि (झा-झाय) व 3/1 सक
'य' विकरण तस्स
(त) 6/1 सवि अव्यय (णियम) 1/1
राग आदि भावों को रोक करके आत्मा को जो . ध्याता है
उसके
णियमं
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र घटित होता है अनिवार्यतः
(हव) व 3/1 अक अव्यय
णियमा
अन्वय- सुहअसुहवयणरयणं रायादीभाववारणं किच्चा जो अप्पाणं झायदि तस्स दु णियमा णियमं हवे।
अर्थ- शुभ-अशुभ (बाह्य) वचन कौशल को (और) रागादि भावों को रोक करके जो (निज) आत्मा को ध्याता है उसके ही अनिवार्यतः सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र घटित होता है।
1.
यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'आदि' का ‘आदी' किया गया है।
नियमसार (खण्ड-2)
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