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वह
113. वदसमिदिसीलसंजमपरिणामो करणणिग्गहो भावो।
सो हवदि पायछित्तं अणवरयं चेव. कायव्वो। वदसमिदिसीलसंजम-[(वद)-(समिदि)-(सील)- महाव्रत, समिति, परिणामो (संजम)-(परिणाम) 1/1] इनकी रक्षार्थ भावनाएँ
तथा संयम-भाव करणणिग्गहो [(करण)-(णिग्गह) 1/1 वि] पंचेन्द्रिय नियंत्रणवाली भावो (भाव) 1/1
चित्तवृत्ति (त) 1/1 सवि हवदि
(हव) व 3/1 अक पायछित्तं (पायछित्त) 1/1
प्रायश्चित्त अणवरयं
अव्यय
अव्यय कायव्वो (का) विधिकृ 1/1 किया जाना चाहिये
___ अन्वय- वदसमिदिसीलसंजमपरिणामो करणणिग्गहो भावो पायछित्तं हवदि सो अणवरयं चेव कायव्वो।
अर्थ- (पंच) महाव्रत', (पंच) समिति', इनकी रक्षार्थ भावनाएँ तथा (मन-वचन-काय का) संयम-भाव (और) पंचेन्द्रिय नियंत्रणवाली चित्तवृत्ति प्रायश्चित्त(निर्विकार चित्त* की प्राप्ति) है। वह लगातार ही किया जाना चाहिये।
लगातार
चेव
अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह। इर्या, भाषा, एषणा, आदान-निक्षेपण और प्रतिष्ठापन। अहिंसाव्रत की पाँच भावनाएँ- वचनगुप्ति, मनोगुप्ति, ईर्यासमिति, आदाननिक्षेपनसमिति और आलोकितपानभोजन। . सत्यव्रत की पाँच भावनाएँ- क्रोधप्रत्याख्यान, लोभप्रत्याख्यान, भीरुप्रत्याख्यान, हास्यप्रत्याख्यान और अनुवीचिभाषण। अचौर्यव्रत की पाँच भावनाएँ- शून्यागारावास, विमोचितावास, परोपरोधाकरण, भैक्षशुद्धि
और सधर्माविसंवाद। ब्रह्मचर्यव्रत की पाँच भावनाएँ- स्त्रीरागकथाश्रवणत्याग, स्त्रीमनोहराङ्गनिरीक्षणत्याग, पूर्वरतानुस्मरणत्याग, वृष्येष्टरसत्याग और स्वशरीरसंस्कारत्याग। अपरिग्रहव्रत की पाँच भावनाएँ- मनोज्ञामनोज्ञस्पर्शरागद्वेषवर्जन, मनोज्ञामनोज्ञरसरागद्वेषवर्जन, मनोज्ञामनोज्ञगंधरागद्वेषवर्जन,मनोज्ञामनोज्ञवर्णरागद्वेषवर्जन और मनोज्ञामनोज्ञशब्दरागद्वेषवर्जन। विस्तार के लिए देखें, सर्वार्थसिद्धि पृष्ठ 266-267 टीकाः पद्मप्रभमलधारीदेव
नोटः
(52)
नियमसार (खण्ड-2)