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106. एवं भेदभासं जो कुव्वइ जीवकम्मणो णिच्चं।
पच्चक्खाणं सक्कदि धरिदं सो संजदो णियमा
अव्यय
इस प्रकार
भेदब्भासं
भेद का अभ्यास
करता है आत्मा और कर्म के
कुव्वइ जीवकम्मणो णिच्चं पच्चक्खाणं
सदैव
प्रत्याख्यान
[(भेद)-(अब्भास) 2/1] (ज) 1/1 सवि (कुव्व) व 3/1 सक [(जीव)-(कम्म) 6/1] अव्यय (पच्चक्खाण) 2/1 (सक्क) व 3/1 अक (धर) हेकृ (त) 1/1 सवि (संजद) 1/1 वि (णियमा) 5/1 पंचमीअर्थक अव्यय
सक्कदि
समर्थ होता है धारण करने के लिए
वह
संजदो
संयमी
णियमा
नियमपूर्वक
अन्वय- एवं जो णिच्चं जीवकम्मणो भेदभासं कुव्वइ सो संजदो णियमा पच्चक्खाणं धरिदुं सक्कदि।
अर्थ- इस प्रकार जो (साधु) सदैव आत्मा और कर्म के भेद का अभ्यास करता है वह संयमी नियमपूर्वक प्रत्याख्यान को धारण करने के लिए समर्थ होता है। नियमसार (खण्ड-2)
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