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________________ 100. आदा खु मज्झ णाणे आदा मे दंसणे चरित्ते या आदा पच्चक्खाणे आदा मे संवरे जोगे। आदा आत्मा पादपूरक मज्झ सम्यग्ज्ञान में आत्मा आदा (आद) 1/1 अव्यय (अम्ह) 6/1 स (णाण) 7/1 (आद) 1/1 (अम्ह) 6/1 स (दसण) 7/1 (चरित्त) 7/1 अव्यय (आद) 1/1 (पच्चक्खाण) 7/1 (आद) 1/1 (अम्ह) 6/1 स . (संवर) 7/1 (जोग) 7/1 सम्यग्दर्शन में सम्यक्चारित्र में तथा आदा पच्चक्खाणे आदा आत्मा प्रत्याख्यान में आत्मा रोकने में मन-वचन-काय में अन्वय- मज्झ णाणे आदा खुमे दंसणे आदा चरित्ते आदा पच्चक्खाणे आदा संवरे य मे जोगे। अर्थ- (अन्तर्मुखी हुआ ज्ञानी इस प्रकार विचार करता है): मेरे सम्यग्ज्ञान में आत्मा (स्थित है), मेरे सम्यग्दर्शन में आत्मा (विद्यमान है) (तथा) (मेरे) सम्यक्चारित्र में आत्मा (वर्तमान है), (मेरे) प्रत्याख्यान (ध्यान) में आत्मा (विद्यमान है), (मेरे) (सुख-दुख भावों को) रोकने में (तथा) मेरे मन-वचनकाय में (आत्मा) (है)। नियमसार (खण्ड-2) (37)
SR No.002305
Book TitleNiyamsara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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