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101. एगो य मरदि जीवो एगो य जीवदि सयं।
एगस्स जादि मरणं एगो सिज्झदि णीरओ॥
102. एगो मे सासदो अप्पा णाणदंसणलक्खणो।
सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा॥
103. जं किंचि मे दुच्चरितं सव्वं तिविहेण वोसरे।
सामाइयं तु तिविहं करेमि सव्वं णिराया।।
104. सम्मं मे सव्वभूदेसु वे मज्झं ण केणवि।
आसाए वोसरित्ता णं समाहि पडिवज्जए।
105. णिक्कसायस्स दंतस्स सूरस्स ववसायिणो।
संसारभयभीदस्स पच्चक्खाणं सुहं हवे॥
106. एवं भेदब्भासं जो कुव्वइ जीवकम्मणो णिच्चं।
पच्चक्खाणं सक्कदि धरिदं सो संजदो णियमा॥
107. णोकम्मकम्मरहियं विहावगुणपज्जएहिं वदिरित्त।
अप्पाणं जो झायदि समणस्सालोयणं होदि।
108. आलोयणमालुंछण वियडीकरणं च भावसुद्धी य।
चउविहमिह परिकहियं आलोयणलक्खणं समए।
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नियमसार (खण्ड-2)