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________________ 158. सव्वे पुराणपुरिसा एवं आवासयं य काऊण। अपमत्तपहुदिठाणं पडिवज्ज य (पडिवज्जिय) केवली जादा॥ सव्वे सभी पुराणपुरिसा एवं आवासयं (सव्व) 1/2 सवि [(पुराण) वि-(पुरिस) 1/2] पौराणिक पुरुष अव्यय इस प्रकार (आवासय) 2/1 वि आवश्यक को अव्यय और (का) संकृ करके [(अपमत्त) वि-(पहुदि) वि- अप्रमत्त आदि (ठाण) 2/1] गुणस्थानों को (पडिवज्ज) संकृ प्राप्त करके काऊण अपमत्तपहुदिठाणं पडिवज्ज य (पडिवज्जिय) केवली केवली (केवलि) 1/2 वि (जा) भूकृ 1/2 जादा अन्वय- सव्वे पुराणपुरिसा एवं आवासयं य काऊण अपमत्तपहुदिठाणं पडिवज्ज य (पडिवज्जिय) केवली जादा। अर्थ- सभी पौराणिक पुरुष इस प्रकार (ध्यानात्मक) आवश्यक को करके, अप्रमत्त आदि गुणस्थानों को प्राप्त करके केवली हुए। (100) नियमसार (खण्ड-2)
SR No.002305
Book TitleNiyamsara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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