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76. एरिसयभावणाए ववहारणयस्स होदि चारित्तं । णिच्छयणयस्स चरणं एत्तो उट्टं पवक्खामि ॥
एरिसयभावणाए
ववहारणयस्स
होदि
चारित्तं
णिच्छयणयस्स
चरणं
एतो'
उडुं
पवक्खामि
1.
नोटः
[(एरिसय) वि - (भावणा) 7 / 1 ] ऐसी भावना होने पर
'य' स्वार्थिक
(ववहारणय) 6/1
(हो) व 3/1 अक
(चारित) 1 / 1
( णिच्छयणय ) 6 / 1
(चरण) 2 / 1
( एत) 5 / 1 सवि
अव्यय
(पवक्ख) भवि 1 / 1 सक
णिच्छयणयस्सचरणं पवक्खामि ।
अर्थ - ऐसी (पूर्वोक्त) भावना के होने पर व्यवहारनय का चारित्र होता है (अब). (मैं) इससे (इसके) बाद में निश्चयनय के चारित्र को कहूँगा ।
नियमसार (खण्ड-1)
व्यवहारनय का
होता है
चारित्र
निश्चयनय के
चारित्र को
इससे (इसके)
बाद में
कहूँगा
अन्वय- एरिसयभावणाए ववहारणयस्स चारितं होदि एत्तो उड
'उड्ड' अव्यय के साथ अपादान का प्रयोग होता है ।
संस्कृत-हिन्दी कोशः वामन शिवराम आप्टे
'एतो उड्ड' का दूसरा अर्थ 'इससे उत्तम' भी लिया जा सकता है जो विचारणीय है।
(संपादक)
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