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53. सम्मत्तस्स णिमित्तं जिणसुत्तं तस्स जाणया पुरिसा।
अंतरहेऊ भणिदा दंसणमोहस्स खयपहुदी ॥
सम्मत्तस्स
सम्यक्त्व का निमित्त
णिमित्तं
जिणसुत्तं
जिनसूत्र उसके
तस्स
जाणया पुरिसा अंतरहेऊ भणिदा दसणमोहस्स . खयपहुदी
(सम्मत्त) 6/1 (णिमित्त) 1/1 (जिणसुत्त) 1/1 (त) 6/1 सवि (जाणय) 1/2 वि (पुरिस) 1/2 [(अंतर) वि-(हेउ) 1/2] (भण) भूकृ 1/2 [(दंसण)-(मोह) 6/1] (खय)-(पहुदि) 1/2 वि]
समझानेवाले मनुष्य अंतरंग निमित्त कहे गये दर्शनमोह के क्षय आदि
अन्वय- सम्मत्तस्स णिमित्तं जिणसुत्तं तस्स जाणया पुरिसा अंतरहेऊ दसणमोहस्स खयपहुदी भणिदा ।
अर्थ- सम्यक्त्व का (बाह्य) निमित्त जिनसूत्र (होता है) (तथा) उस (जिनसूत्र) के समझानेवाले मनुष्य (भी) (बाह्य निमित्त) (कहे गये हैं) (किन्तु) अंतरंग निमित्त दर्शनमोह के क्षय आदि कहे गये (हैं)।
नोटः
सपादक द्वारा अनूदित अर्थ परम्परा से भिन्न किया गया है।
नियमसार (खण्ड-1)
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