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________________ 51. विवरीयाभिणिवेसविवज्जियसद्दहणमेव सम्मत्तं । संसयविमोहविब्भमविवज्जियं होदि सण्णाणं ॥ 52. चलमलिणमगाढत्तविवज्जियसद्दहणमेव सम्मत्तं । अधिगमभावो णाणं हेयोवादेयतच्चाणं || विवरीयाभिणिवेस - [ (विवरीय) + (अभिणिवेसविवज्जियसद्दहणमेव विवज्जियसद्दहणं) + (एव) ] सम्मत्तं ( सम्मत्त ) 1 / 1 संसयविमोहविब्भम- [(संसय) - (विमोह) वि [(विवरीय) वि- (अभिणिवेस) - अशुद्ध अभिप्रायरहित (विवज्जिय) वि - (सद्दहण) 1 / 1 ] श्रद्धान एव (अ) = ही ही विवज्जियं होदि सणा (विब्भम)-(विवज्जिय)1/1 वि] विभ्रमरहित (हो) व 3 / 1 अक होता है ( सण्णाण ) 1 / 1 सम्यग्ज्ञान चलमलिणमगाढत्त- [(चलमलिणं)+(अगाढत्तविवज्जियसद्दहणमेव विवज्जियसद्दहणं ) + (एव) ] नियमसार (खण्ड-1) सम्यक्त्व संशय, विमोह और चलमलिणं [(चल) - (मलिण) 1 / 1 ] अगाढत्तविवज्जियसद्दहणं क्षोभ और दोष (63)
SR No.002304
Book TitleNiyamsara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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