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________________ 45. वण्णरसगंधफासा थीपुंसणउंसयादि पज्जाया वण्णरसगंधफासा थीपुंसणउंसयादिपज्जाया । संठाणा संहणणा सव्वे जीवस्स णो संति ॥ संठाणा संहणणा सव्वे जीवस संति [ ( वण्ण) - (रस) - (गंध) - (फास) 1/2 ] [(थीपुंसणउंसय) + (आदिपज्जाया)] [(थी) - (पुंस) - (णउंसय) - (आदि) - (पज्जा ) 1/2] ( संठाण) 1/2 (संहणण) 1 / 2 (सव्व) 1/2 सवि (जीव) 4/1 अव्यय (संति) व 3 / 2 अक अनि वर्ण, रस, गंध और स्पर्श स्त्री, पुरुष, नपुंसक आदि पर्यायें संठाण संहनन सभी जीव के लिये नहीं होते हैं अन्वय- वण्णरसगंधफासा श्रीपुंसणउंसयादिपज्जाया संठाणा संहणणा सव्वे जीवस्स णो संति । अर्थ- वर्ण, रस, गंध, स्पर्श (गुण), स्त्री, पुरुष, नपुंसक आदि पर्यायें, संठाण (शरीर आकार), संहनन (शरीर की हड्डियाँ आदि) - (ये) सभी जीव (परम आत्मा) के लिये नहीं होते हैं । नियमसार (खण्ड-1) (57)
SR No.002304
Book TitleNiyamsara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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