SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 39. णो खलु सहावठाणा णो माणवमाणभावठाणा वा। णो हरिसभावठाणा णो जीवस्साहरिस्सठाणा वा ॥ नहीं और अव्यय खलु अव्यय वाक्यालंकार सहावठाणा [(सहाव)-(ठाण) 1/2] स्वभाव से (उत्पन्न) पर्यायें णो अव्यय नहीं माणवमाणभावठाणा [(माण)+ (अवमाणभावठाणा)] [(माण)-(अवमाण)- मान-अपमान की (भाव)-(ठाण) 1/2] भाव दशाएँ अव्यय अव्यय नहीं हरिसभावठाणा [(हरिस)-(भाव) हर्ष की भाव दशाएँ (ठाण) 1/2] अव्यय नहीं जीवस्साहरिस्सठाणा [(जीवस्स)+ (अहरिस्सठाणा)] जीवस्स (जीव) 6/1-7/1 जीव में अहरिस्सठाणा [(अहरिस्स)- खेद की भाव दशाएँ (ठाण) 1/2] अव्यय भी वा अन्वय- जीवस्स सहावठाणा णो खलु माणवमाणभावठाणा णो हरिसभावठाणा णो वा अहरिस्सठाणा वा णो । अर्थ- जीव में (परम आत्मा में) (अनेक विभाव पर्यायों की तरह) स्वभाव से (उत्पन्न) (अनेक) पर्यायें नहीं (होती) । (वहाँ) मान-अपमान की भाव दशाएँ नहीं (होती है)। हर्ष की भाव दशाएँ नहीं (है) और खेद की भाव दशाएँ भी नहीं (होती है)। 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम -प्राकृत-व्याकरणः 3-134) नियमसार (खण्ड-1) (51)
SR No.002304
Book TitleNiyamsara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy