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27. एयरसरूवगंधं दोफासं तं हवे सहावगुणं । विहावगुणमिदि भणिदं जिणसमये सव्वपयडत्तं ॥
एयरसरूवगंधं
दोफासं
तं
हवे
सहावगुणं विहावगुणमिदि
भणिदं
जिणसमये
सव्वपयडत्तं
[(एय) वि - (रस) - (रूव) -
(गंध) 1 / 1 ]
(दो - फास) 1 / 1
(a) 1/1
सवि
( हव) व 3 / 1 अक
[ ( सहाव ) - ( गुण) 1 / 1] [(विहावगुणं) + (इदि)]
विहावगुणं [(विहाव ) -
(38)
( गुण) 1 / 1 ]
इदि (अ) = ही
(भण) भूकृ 1 / 1
[ ( जिण) - (समय) 7 / 1]
[ ( सव्व) सवि
( पयडत्त ) 1 / 1 ]
एक रस, एक रूप
और एक गंध
दो स्पर्श
वह
होता है
स्वभावगुण
विभावपर्याय
ही
कही गई
जिनशासन में
प्रत्येक प्रकार की
प्रकटता
अन्वय- - एयरसरूवगंधं दोफासं तं सहावगुणं हवे सव्वपयडत्तं जिणसमये विहावगुणमिदि भणिदं ।
अर्थ - (परमाणु में) एक रस, एक रूप, एक गंध (और) दो स्पर्श (होते हैं) वह (पुद्गल का) स्वभावगुण होता है ( किन्तु ) प्रत्येक प्रकार की (स्कंधरूप) प्रकटता जिनशासन में (पुद्गल की ) विभावपर्याय ही कही गई ( है ) ।
नियमसार (खण्ड-1)