SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 25. धाउचउक्कस्स पुणो जं of 4. हेऊ करणं तं यो खंधणं अवसाणं णादव्वो कज्जपरमाणु * 2. धाउचउक्कस्स पुणो जं हेऊ कारणं ति तं णेयो । खंधाणं अवसाणं णादव्वो कज्जपरमाणु ॥ 1. नोट: (36) [ ( धाउ ) - ( चउक्क ) 6 / 1] अव्यय (ज) 1 / 1 सवि (हेउ) 1/1 [ ( कारणं) + (इति)] कारणं (कारण) 1/1 इति (अ) = अव्यय (य) विधि 1 / 1 अनि (खंध) 6/2 चार धातुओं का फिर जो कारण आधार शब्दस्वरूपद्योतक ही समझा जाना चाहिए स्कन्धों का अंतिम भाग अन्वय अवसाणं कज्जपरमाणु णादव्वो । अर्थ - फिर चार धातुओं (पृथ्वी, जल, तेज और वायु) का जो आधार ( है ) ( वह) ही कारण (परमाणु) समझा जाना चाहिए (और) (जो) स्कन्धों का अंतिम भाग (है) (वह) कार्यपरमाणु ज्ञातव्य (है)। (अवसाण) 2/11/1 ज्ञातव्य (णा) विधि 1/1 [(कज्ज) - (परमाणु) 1/1] कार्यपरमाणु पुणो धाउचउक्कस्स जं कारणं ति तं हेऊ णेयो खंधाणं प्रथमा विभक्ति के स्थान पर कभी-कभी द्वितीया विभक्ति होती है । ( हेम-प्राकृत - व्याकरणः 3 - 137 वृत्ति ) यहाँ ‘अवसाण' शब्द पुल्लिंग की तरह प्रयुक्त हुआ है। प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है । (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517 ) संपादक द्वारा अनूदित नियमसार (खण्ड-1)
SR No.002304
Book TitleNiyamsara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy