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21.
अइथूलथूल थूलं थूलसुहुमं च सुहुमथूलं च । सुहुमं अइसुहुमं इदि धरादियं होदि छन्भेयं ॥
*अइथूलथूल थूलं थूलसुहुमं
और
सुहुमथूलं
सुहुमं अइसुहुमं
[(अइ) अ (थूलथूल)1/1 वि] अति स्थूलस्थूल (थूल) 1/1 वि
स्थूल (थूलसुहुम) 1/1 वि स्थूलसूक्ष्म अव्यय (सुहुमथूल) 1/1 वि सूक्ष्मस्थूल अव्यय
और (सुहुम) 1/1 वि
सूक्ष्म [(अइ) अ (सुहुम) 1/1 वि] अतिसूक्ष्म अव्यय
वाक्यार्थद्योतक [(धरा)+(आदियं)] [(धरा)-(आदिय) 1/1] पृथ्वी आदि 'य' स्वार्थिक (हो) व 3/1 अक (छ-ब्भेय) 1/1 वि छ भेदरूप
इदि
धरादियं
होदि छब्भेयं
होता है
अन्वय- अइथूलथूल थूलं थूलसुहुमं च सुहुमथूलं सुहुम च अइसुहुमं इदि धरादियं छब्भेदं होदि ।
अर्थ- (स्कन्ध) अति स्थूलस्थूल, स्थूल, स्थूलसूक्ष्म और सूक्ष्मस्थूल, सूक्ष्म और अति सूक्ष्म (होते हैं)। (इस प्रकार) पृथ्वी आदि (स्कन्ध) छ भेदरूप होता है।
नोटः
प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517) इस गाथा में समाहार द्वन्द्व समास तथा समाहार द्विगु समास के नियम का प्रयोग किया गया है इसलिए सभी जगह नपुंसकलिंग एकवचन रखा गया है। संपादक द्वारा अनूदित
नोटः
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नियमसार (खण्ड-1)