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________________ 20. अणुखंधवियप्पेण दु पोग्गलदव्वं हवेदि दुवियप्पं । खंधा हु छप्पयारा परमाणू चेव दुवियप्पो ॥ अणुखंधवियप्पेण' [(अणु)-(खंध) (वियप्प) 3/1] अव्यय पोग्गलदव्वं [(पोग्गल)-(दव्व) 1/1] हवेदि (हव) व 3/1 अक दुवियप्पं (दुवियप्प) 1/1 वि (खंध) 1/2 अव्यय छप्पयारा (छ-प्पयार) 1/2 वि परमाणू (परमाणु) 1/1 चेव अव्यय दुवियप्पो (दुवियप्प) 1/1 वि परमाणु और स्कंध भेद के कारण पादपूरक पुद्गलद्रव्य होता है दो प्रकार का स्कन्ध पादपूरक छ भेदवाले खंधा परमाणु और दो भेदवाला अन्वय- अणुखंधवियप्पेण दु पोग्गलदव्वं दुवियप्पं हवेदि खंधा हु छप्पयारा चेव परमाणू दुवियप्पो।। अर्थ- परमाणु और स्कंध भेद के कारण पुद्गलद्रव्य दो प्रकार का होता है। स्कंध छ भेदवाले (होते हैं) और परमाणु दो भेदवाला (होता है) (कार्य परमाणु और कारण परमाणु)। कारण व्यक्त करनेवाले शब्दों में तृतीया या पंचमी होती है। (प्राकृत-व्याकरणः पृष्ठ 36) कभी-कभी समूह अर्थ में द्विगु समास पुल्लिंग एकवचन में भी होता है। (प्राकृत-व्याकरणः पृष्ठ 18) नियमसार (खण्ड-1) (31)
SR No.002304
Book TitleNiyamsara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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