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11.
केवलमिंदियरहियं असहायं तं सहावणाणं ति।
सण्णाणिदरवियप्पे विहावणाणं हवे दुविहं ॥ 12. सण्णाणं चउभेयं मदिसुदओही तहेव मणपज्जं ।
अण्णाणं तिवियप्पं मदियाई भेददो चेव ॥
केवलमिंदियरहियं [(केवलं) + (इंदियरहियं)]
केवलं (केवल) 1/1 केवलज्ञान
[(इंदिय)-(रहिय) 1/1 वि] इन्द्रियों से रहित असहायं (असहाय) 1/1 वि सहायता निरपेक्ष (त) 1/1 सवि
वह सहावणाणं ति [(सहावणाणं)+ (इति)]
सहावणाणं [(सहाव)- स्वभावज्ञान (णाण) 1/1] इति (अ) =
इसलिए सण्णाणिदरवियप्पे [(सण्णाण) + (इदरवियप्पे)]
[(सण्णाण)-(इदर) वि- सीमित तथा निर्दोष (वियप्प) 7/1+5/1] ज्ञान (सम्यग्ज्ञान)
(तथा) उससे भिन्न सीमित तथा सदोष ज्ञान (मिथ्याज्ञान) के
भेद के कारण विहावणाणं [(विहाव)-(णाण) 1/1] विभावज्ञान हवे
(हव) व 3/1 अक होता है (दुविह) 1/1 वि
दो प्रकार का सण्णाणं (सण्णाण) 1/1
सम्यग्ज्ञान चउभेयं (चउभेय) 1/1 वि
चार प्रकार का
दुविहं
।
1.
कभी-कभी पंचमी विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हेम -प्राकृत-व्याकरणः 3-136)
नियमसार (खण्ड-1)
(21)