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2.
मग्गो मग्गफलं ति य दुविहं जिणसासणे समक्खादं। मग्गो मोक्खउवाओ तस्स फलं होइ णिव्वाणं ॥
मार्ग
मग्गो मग्गफलं ति
(मग्ग) 1/1 [(मग्गफलं)+ (इति)] मग्गफलं (मग्गफल) 1/1 इति (अ) =
मार्ग का फल वाक्यालंकार
अव्यय
और
दुविहं
(दुविह) 1/1 वि [(जिण)-(सासण) 7/1]
जिणसासणे
दो प्रकार का जिनेन्द्र भगवान के शासन में कहा गया मार्ग मोक्ष का उपाय
समक्खादं मग्गो मोक्खउवाओ तस्स फलं
(समक्खाद) भूकृ 1/1 अनि (मग्ग) 1/1 [(मोक्ख)-(उवाअ) 1/1] (त) 6/1 सवि (फल) 1/1 (हो) व 3/1 अक (णिव्वाण) 1/1
उसका
होइ
फल होता है निर्वाण
णिव्वाणं
अन्वय- जिणसासणे मग्गो य मग्गफलं ति दुविहं समक्खादं मोक्खउवाओ मग्गो तस्स फलं णिव्वाणं होई।
अर्थ- जिनेन्द्र भगवान के शासन में मार्ग और मार्ग का फल दो प्रकार का कहा गया (है)। मोक्ष का उपाय मार्ग (है) (और) उस (मार्ग) का फल निर्वाण (मोक्ष) होता है।
(12)
नियमसार (खण्ड-1)