SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1. णमिऊण जिणं वीरं अणंतवरणाणदंसणसहावं । वोच्छामि णियमसारं केवलिसुदकेवलीभणिदं॥ संकृ जिणं णमिऊण (जिण) 2/1 वीरं (वीर) 2/1 अणंतवरणाणदसण- {[(अणंत) वि-(वर) वि- । सहावं (णाण)-(दसण)-(सहाव) 2/1] वि} वोच्छामि (वोच्छ) भवि 1/1 सक णियमसारं (णियमसार) 2/1 केवलिसुदकेवली- [(केवलि)-(सुदकेवलिभणिदं सुदकेवली)(भण) भूकृ 2/1] नमस्कार करके तीर्थंकर महावीर को अनन्त और श्रेष्ठ/ . उत्तम ज्ञान-दर्शन स्वभाववाले कहूँगा नियमसार को केवलियों तथा श्रुतकेवलियों द्वारा प्रतिपादित अन्वय- अणंतवरणाणदंसणसहावं जिणं वीरं णमिऊण केवलिसुदकेवलीभणिदं णियमसारं वोच्छामि । ___ अर्थ- अनन्त और श्रेष्ठ/उत्तम ज्ञान-दर्शन स्वभाववाले तीर्थंकर महावीर को नमस्कार करके (मैं) केवलियों तथा श्रुतकेवलियों द्वारा प्रतिपादित नियमसार को कहूँगा। 1. 2. प्राकृत-व्याकरणः पृष्ठ 16 (ii) छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु ‘सुदकेवलि' का 'सुदकेवली' हुआ है। नियमसार (खण्ड-1) (11)
SR No.002304
Book TitleNiyamsara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy