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58. पंथे मुस्संतं पस्सिदूण लोगा भणंति ववहारी।
मुस्सदि एसो पंथो ण य पंथो मुस्सदे कोई॥
मार्ग में
पंथे मुस्संतं पस्सिदूण
देखकर
लोगा
लोग
भणंति ववहारी मुस्सदि
(पंथ) 7/1 (मुस्संत) वकृ कर्म 2/1 अनि लूटा जाता हुआ (पस्स) संकृ (लोग) 1/2 (भण) व 3/2 सक कहते हैं (ववहारि) 1/2 वि (मुस्सदि) व कर्म 3/1 अनि लूटा जाता है (एत) 1/1 सवि (पंथ) 1/1
सामान्य
अव्यय
किन्तु
अव्यय (पंथ) 1/1 (मुस्सदे) व कर्म 3/1 अनि
लूटा जाता है कोई
अव्यय
अन्वय- पंथे मुस्संतं पस्सिदूण ववहारी लोगा भणंति एसो पंथो मुस्सदि य कोई पंथो ण मुस्सदे।
__ अर्थ- मार्ग में (व्यक्ति को) लूटा जाता हुआ देखकर सामान्य लोग (यह) कहते हैं यह मार्ग लूटा जाता है, किन्तु (वास्तव में) कोई मार्ग लूटा नहीं जाता है (लूटा तो व्यक्ति जाता है)। 1. यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु कोई' के स्थान पर कोई' किया गया है।
समयसार (खण्ड-1)
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