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56. ववहारेण दु एदे जीवस्स हवंति वण्णमादीया।
गुणठाणंता भावा ण दु केई णिच्छयणयस्स।
जीवस्स
ववहारेण (ववहार) 3/1
व्यवहारनय से तृतीयार्थक अव्यय अव्यय (एद) 1/2 सवि (जीव) 6/1
जीव के हवंति (हव) व 3/2 अक होते हैं वण्णमादीया [(वण्णं)+(आदीया)]
वण्णं (वण्ण) 1/1 आदीया (आदिय) 5/1 वगैरह से
'य' स्वार्थिक गुणठाणंता
[(गुणठाण)+(अंता)] [(गुण)-(ठाण)
गुणस्थान की सीमा (अंत) 1/2 वि] तक (भाव) 1/2
भाव अव्यय अव्यय
अव्यय णिच्छयणयस्स (णिच्छयणय) 6/1+3/1 निश्चयनय से
तृतीयार्थक अव्यय अन्वय- एदे वण्णमादीया गुणठाणंता भावा ववहारेण दु जीवस्स हवंति दु णिच्छयणयस्स केई ण।
अर्थ- ये वर्ण वगैरह से गुणस्थान की सीमा तक भाव व्यवहारनय से तो जीव के होते हैं, किन्तु निश्चयनय से कोई (भी) (वर्णादि भाव) (जीव के) नहीं (होते हैं)।
भावा
नहीं
किन्तु
कोई
1.
कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-134)
समयसार (खण्ड-1)
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