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________________ 51. जीवस्स णत्थि रागो ण वि दोसो णेव विज्जदे मोहो। णो पच्चया ण कम्मं णोकम्मं चावि से णत्थि।। जीव के जीवस्स णत्थि नहीं है (जीव) 6/1 अव्यय (राग) 1/1 अव्यय रागो * * * * * * अव्यय दोसो णेव विज्जदे मोहो (दोस) 1/1 अव्यय (विज्ज) व 3/1 अक (मोह) 1/1 अव्यय (पच्चय) 1/2 मोह पच्चया नहीं आस्रव व बंध का कारण कम्म णोकम्म चावि अव्यय (कम्म) 1/1 (णोकम्म) 1/1 अव्यय (त) 6/1 सवि अव्यय कर्म नोकर्म और भी उसके नहीं है णत्थि अन्वय- जीवस्स रागो णत्थि दोसो वि ण णेव मोहो विज्जदे पच्चया णो ण कम्मं चावि से णोकम्मं णत्थि। अर्थ- जीव के राग नहीं है, द्वेष भी नहीं (है), न ही (उसके) मोह है, आस्रव व बंध का कारण (भी) नहीं (है), न कर्म (है) और उसके नोकर्म (शरीरादि) भी नहीं है। 1. मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग- यह पाँच आस्रव व बंध के हेतु या प्रत्यय कहलाते हैं। (जैन दर्शन पारिभाषिक शब्दकोश) (62) समयसार (खण्ड-1)
SR No.002302
Book TitleSamaysara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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