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________________ 49. अरसमरूवमगंधं अव्वत्तं चेदणागुणमसह। जाण अलिंगग्गहणं जीवमणिहिट्ठसंठाणं।। अव्वत्तं अप्रकट अरसमरूवमगंधं [(अरस)+(अरूवं)+(अगंध)] अरसं (अरस) 2/1 वि रसरहित अरूवं (अरूव) 2/1 वि रूपरहित अगंधं (अगंध) 2/1 वि गंधरहित (अव्वत्त) 2/1 वि चेदणागुणमसदं [(चेदणागुणं)+(असई)] चेदणागुणं (चेदणागुण) 2/1 वि चेतना गुणवाला असई (असद्द) 2/1 वि शब्दरहित जाण (जाण) विधि 2/1 सक जानो अलिंगग्गहणं (अलिंगग्गहण) 2/1 वि तर्क से ग्रहण न होनेवाला जीवमणिद्दिठ्ठसंठाणं [(जीवं)+(अणिद्दिठ्ठसंठाणं)] जीवं (जीव) 2/1 जीव को [(अणिट्ठि) भूकृ अनि- न कहे हुए (संठाण) 2/1 वि] आकारवाला अन्वय- जीवं अरसं अरूवं अगंधं अव्वत्तं चेदणागुणं असई अलिंगग्गहणं अणिद्दिट्ठसंठाणं जाण। अर्थ- (तुम) जीव को रसरहित, रूपरहित, गंधरहित, (स्पर्श से भी) अप्रकट, चेतना गुणवाला, शब्दरहित, तर्क से ग्रहण न होनेवाला (तथा) न कहे हुए आकारवाला जानो। (विभिन्न जीवों द्वारा विभिन्न शरीराकार ग्रहण किया हुआ होने के कारण कोई एक आकार नियत नहीं किया जा सकता है)। नोटः संपादक द्वारा अनूदित (60) समयसार (खण्ड-1)
SR No.002302
Book TitleSamaysara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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