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________________ 34. सव्वे भावे जम्हा पच्चक्खाई' परेत्ति सव्वे भावे जम्हा पच्चक्खाई परे त्ति णादूणं । तम्हा पच्चक्खाणं गाणं णियमा मुणेदव्वं ॥ | णादूणं तम्हा पच्चक्खाणं णणं णियमा मुणेदव्वं 1. (44) (सव्व) 2 / 2 सवि (भाव) 2/2 अव्यय ( पच्चक्खा) व 3 / 1 सक [ ( परे) + (इति)] परे (पर) 2/2 वि इति (अ) (णा) संकृ अव्यय = ( पच्चक्खाण) 1/1 ( णाण) 1 / 1 (नियम) 5 / 1 (मुण) विधि 1/1 समस्त भावों को चूँकि त्याग देता है पर शब्दस्वरूपद्योतक जानकर इसलिए प्रत्याख्यान अन्वय- जम्हा सव्वे परे त्ति भावे णादूणं पच्चक्खाई तम्हा पच्चक्खाणं णाणं णियमा मुणेदव्वं । अर्थ - चूँकि (जो ) समस्त पर भावों को जानकर त्याग देता है, इसलिए (उसका) प्रत्याख्यान (स्वसंवेदन) ज्ञान (ही) (है) (यह) नियम से समझा जाना चाहिये। ज्ञान नियम से समझा जाना चाहिये यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'पच्चक्खाई' के स्थान पर 'पच्चक्खाई' किया गया है। समयसार (खण्ड- 1 -1)
SR No.002302
Book TitleSamaysara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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