SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 33. जिदमोहस्स दु जड़या खीणो मोहो हविज्ज साहुस्स । तइया हु खीणमोहो भण्णदि सो णिच्छयविदूहिं || मोह दु जइया खीणो मोहो हविज्ज साहुस्स तइया ncs हु खीणमोहो भणदि सो णिच्छयविदूहिं [(जिद) भूक अनि (मोह) 6/1 वि] अव्यय अव्यय ( खीण) 1 / 1 वि (मोह) 1/1 (हव) भवि 3/1 अक ( साहु) 6/1 अव्यय जीते हुए मोहवाला पादपूरक जब क्षीण मोह होगा साधु का तब निश्चय ही नष्ट किये हुए मोहवाला अव्यय [ ( खीण) वि - (मोह) 1/1] ( भण्णदि) व कर्म 3 / 1 अनि कहा जाता है (त) 1/1 संवि वह ( णिच्छयविदु) 3/2 वि आत्मस्थ ज्ञानियों द्वारा अन्वय- जइया जिदमोहस्स दु साहुस्स मोहो खीणो हविज्ज तइया णिच्छयविदूहिं सो हु खीणमोहो भण्णदि । अर्थ- जब जीते हुए मोहवाले साधु का मोह क्षीण होगा तब आत्मस्थ ज्ञानियों द्वारा वह (साधु) निश्चय ही नष्ट किये हुए मोहवाला (पुद्गलात्मक मोहनीय कर्म को नष्ट करनेवाला) कहा जाता है। समयसार (खण्ड-1) (43)
SR No.002302
Book TitleSamaysara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy