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णिचं
24. सव्वण्हुणाणदिट्ठो जीवो उवओगलक्खणो णिच्चं।
कह सो पोग्गलदव्वीभूदो जं भणसि मज्झमिणं॥ सव्वण्हुणाणदिट्ठो [(सव्वण्हु)-(णाण)- सर्वज्ञ के ज्ञान में
(दिठ्ठ) भूकृ 1/1 अनि] देखा गया जीवो (जीव) 1/1
जीव उवओगलक्खणो [(उवओग)-(लक्खण) उपयोगलक्षणवाला
1/1 वि] अव्यय
सदा कह अव्यय
क्यों/कैसे (त) 1/1 सवि
वह पोग्गलदव्वीभूदो [(पोग्गल)+(दव्व)+(ई)+(भूदो)]
[(पोग्गल)-(दव्व)-(भूद) पुद्गल द्रव्यरूप हुआ भूक 1/1 अनि] ई (अ)= पादपूरक पादपूरक
चूँकि भणसि
(भण) व 2/1 सक कहता है मज्झमिणं [(मज्झं)+(इणं)]
मज्झं (अम्ह) 6/1 स मेरा इणं (इम) 2/1 सवि इसको
अव्यय
अन्वय- जं मज्झमिणं भणसि सव्वण्हुणाणदिट्ठो जीवो णिच्चं उवओगलक्खणो सो पोग्गलदव्वीभूदो कह।
____ अर्थ- चूँकि (तू) इसको (पुद्गल द्रव्य को) मेरा कहता है, (किन्तु) सर्वज्ञ के ज्ञान में देखा गया (है) (कि) जीव सदा उपयोगलक्षणवाला (होता है)। (तो प्रश्न है) वह (जीव) पुद्गल द्रव्यरूप क्यों/कैसे हुआ? .
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समयसार (खण्ड-1)