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जीवराया
णादव्वो
तह य
सद्ददव्वो
अणुचरिदव्वो
य
पुण
सो
चेव
दु
मोक्खकामेण
[ (जीव ) - (राय) 1 / 1 ]
(णा) विधि 1/1
अव्यय
(सद्दह) विधिकृ 1/1
(28)
(अणुचर) विधि 1/1
अव्यय
अव्यय
(त) 1 / 1 सवि
अव्यय
आत्मारूपी राजा
समझा जाना चाहिये
तथा
श्रद्धा किया जाना
चाहिये
अनुभव किया जाना
चाहिये
और
फिर
वह
अव्यय
निस्सन्देह
[ ( मोक्ख) - (काम) 3 / 1 वि] मोक्ष के इच्छुक
(मनुष्य) के द्वारा
अन्वय- जह णाम को वि अत्थत्थीओ पुरिसो रायाणं जाणिऊण सद्दहदि पुणो तो तं पयत्तेण अणुचरदि एवं हि मोक्खकामेण जीवराया सद्दहेदव्वो तह य णादव्वो य पुणो दु सो चेव अणुचरिदव्वो ।
अर्थ- जैसे कोई भी धन का इच्छुक मनुष्य राजा को जानकर (उस पर ) विश्वास करता है और तब उसकी सावधानीपूर्वक सेवा करता है वैसे ही मोक्ष के इच्छुक (मनुष्य) के द्वारा आत्मारूपी राजा श्रद्धा किया जाना चाहिये तथा समझा जाना चाहिये और फिर निस्सन्देह वह ही अनुभव किया जाना चाहिये।
समयसार (खण्ड-1)