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________________ 15. जो पस्सदि अप्पाणं अबद्धपुढे अणण्णमविसेसं। अपदेससुत्तमझं पस्सदि जिणसासणं सव्व।। पस्सदि अप्पाणं अबद्धपुढे अणण्णमविसेसं (ज) 1/1 सवि (पस्स) व 3/1 सक जानता है (अप्पाण) 2/1 आत्मा को [(अबद्ध)+(अपुढे)] [(अबद्ध) भूकृ अनि- कर्मबंधन से रहित, (अपुट्ठ) भूकृ 2/1 अनि] अस्पर्शित [(अणण्णं)+(अविसेस)] अणण्णं (अणण्ण) 2/1 वि अन्य से रहित अविसेसं (अविसेस) 2/1 वि अंतरंग भेद-रहित [(अपदेस)-(सुत्त)- उपदेश और साररूप (मज्झ) 2/1 वि] में अन्तर्वर्ती (पस्स) व 3/1 सक जानता है [(जिण)-(सासण) 2/1] जिनशासन को (सव्व) 2/1 सवि अपदेससुत्तमझं पस्सदि जिणसासणं सव्वं सम्पूर्ण अन्वय- जो अप्पाणं अबद्धपुढे अणण्णमविसेसं पस्सदि अपदेससुत्तमज्झं सव्वं जिणसासणं पस्सदि। अर्थ- जो (नय) आत्मा को कर्मबंधन से रहित, (पर से) अस्पर्शित अन्य (विभाव पर्यायों) से रहित, अंतरंग भेद-रहित जानता है (वह) उपदेश (से प्राप्त द्रव्यश्रुत) और साररूप में (अनुभूत भावश्रुत के कारण) अन्तवर्ती सम्पूर्ण जिनशासन को जानता है। 1. 2. नोटः अपदेससंतमज्झं के स्थान पर अपदेससुत्तमझं पाठ लिया गया है। अपदेस = उपदेश (आप्टेः संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश) संपादक द्वारा अनूदित समयसार (खण्ड-1) (25)
SR No.002302
Book TitleSamaysara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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