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________________ 9. 10. 5ি are जो हि सुदेणहिगच्छदि जो हि सुदेणहिगच्छदि अप्पाणमिणं तु केवलं सुद्धं । तं सुदकेवलिमिसिणो भांति लोयप्पदीवयरा ।। जो दणाणं सव्वं जाणदि सुदकेवलिं तमाहु जिणा। णाणं अप्पा सव्वं जम्हा सुदकेवली तम्हा ।। जो अप्पाणमिणं तु केवलं सुद्धं तं भति लोयप्पदीवरा (ज) 1 / 1 सवि अव्यय जो सुदणाणं सव्वं समयसार (खण्ड-1 ) [(सुदेण) + (अहिगच्छदि ) ] सुदेण (सुद ) 3 / 1 अहिगच्छदि (अहिगच्छ) (त) 2 / 1 सवि सुदकेवलिमिसिणो [(सुदकेवलिं) + (इसिणो)] सुदकेवलिं (सुदकेवलि) 2 / 1 इसिणो (इसि) 1/2 व 3/1 सक [(अप्पाणं) + (इणं)] अप्पाणं ( अप्पाण) 2/1 इणं (इम) 2/1 सवि अव्यय (केवल) 2 / 1 वि (सुद्ध) 2/1 वि श्रुतज्ञान से अनुभव करता है [ ( सुद) - ( णाण) 2 / 1] (सव्व) 2/1 सवि आत्मा को इस पादपूरक एकमात्र शुद्ध उसको श्रुतकेवली महर्षि (भण) व 3/2 सक कहते हैं [(लोय) - (प्पदीवयर) 1/2 वि] लोक के प्रकाशक (ज) 1/1 सवि जो श्रुतज्ञान समस्त को (19)
SR No.002302
Book TitleSamaysara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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