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तत्पुरुष), चउत्थी विभत्ति तप्पुरिस (चतुर्थी तत्पुरुष), पंचमी विभत्ति तप्पुरिस (पंचमी तत्पुरुष), छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस (षष्ठी तप्पुरुष) और सत्तमी विभत्ति तप्पुरिस ( सप्तमी तत्पुरुष ) ।
(i) बिइआ / बीआ विभत्ति तप्पुरिस (द्वितीया तत्पुरुष) अतीत, पडिअ, गअ, पत्त और आवण्ण शब्दों के योग में द्वितीया विभक्ति के आने पर द्वितीया - तत्पुरुष समास होता है। जैसे
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इंदिय अतीतो = इंदियातीतो (इंद्रियों से अतीत), अग्गि पडिअ अग्गिपडिअ (अग्नि में पडा हुआ), सिव गउ = सिवगड (शिव को प्राप्त), सुह पत्तु = सुहपत्तु (सुख को प्राप्त), पलय गओ पलयगओ (प्रलय को प्राप्त), दिव गअ = दिवगअ (स्वर्ग को प्राप्त), कंट्ठ आवण्णो कट्ठावणो (कष्ट को प्राप्त) ।
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(ii) तइआ विभत्ति तप्पुरिस (तृतीया तत्पुरुष ) - जब तत्पुरुष समास का प्रथम शब्द तृतीया विभक्ति में हो, तब उसे तृतीया तत्पुरुष समास कहते हैं । जैसे
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साहूहिं वन्दिउ = साहुवंदिउ (साधुओं द्वारा वंदित ), जिणें सरिसु = जिणसरिसु (जिनके समान), दयाए जुतु = दयाजुतु (दया से युक्त), गुणेहिं संपन्न = गुणसंपन्न ( गुणों से सम्पन्न), पंकें लित्तु = पंकलितु (कीचड़ से लिप्त ) ।
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(iii) चउत्थी विभति तप्पुरिस (चतुर्थी तत्पुरुष ) - जब तत्पपुरुष समास का प्रथम शब्द चतुर्थी विभक्ति में हो, तब उसे चतुर्थी तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे -
अपभ्रंश व्याकरण: सन्धि-समास-कारक (14)
मोक्खहो नाण = मोक्खनाण (मोक्ष के लिए ज्ञान ), लोयाहो हिअ लोयहिअ (लोक के लिए हित ), लोगसु सुहु - लोगसुहु (लोग के लिए सुख), बहुजणसु हिम - बहुजणहिअ (बहुजनों के लिए हित ) ।
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