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शासन सम्राट: जीवन परिचय.
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जन्म से अब छ संतान हो गए । नेमचंद के बडा होने पर उसे पाठशाला में बैठाने का समय आया । लक्ष्मीचंदभाई को इसबात का बहुत उत्साह था । इसके लिए उन्होंने शुभदिन और शुभ घडी की जानकारी की । धामधूम से उस दिन वे स्वयं बालक नेमचंद को प्राथमिक पाठशाला में ले गए । नेमचंद को पाठशाला में बैठाने के उपलक्ष में शिक्षकों और विद्यार्थीयों को मिठाई बाँटी गई । इस देहाती पाठशाला के प्रमुख शिक्षक भयाचंदभाई नामक सद्गृहस्थ थे । वे बच्चों को वर्णमाला और गिनती सिखाते थे । पहले ही दिन से भयाचंदभाई को इस बात का विश्वास हो गया था कि पाठशाला के बच्चों में नेमचंद बहुत तेजस्वी छात्र था
देहातीशाला का अभ्यास पूर्ण होने पर नेमचंद को हरिशंकर मास्टर के विद्यालय में रखा गया । हरिशंकर मास्टर पढ़ाने में बहुत होशियार थे । वे गुजराती में सात पुस्तक शिक्षा देते किन्तु उनका शिक्षण इतना सचोट होता कि विद्यार्थी जीवनभर उसे न भूले । उन दिनों दो प्रकार की शालाऐं थी (१) गुजराती ( वर्नाक्युलर) (२) अंग्रेजी गुजराती चौथी कक्षा के बाद होंशियार विद्यार्थी अंग्रेजी विद्यालय में प्रवेश लेते थे । नेमचंद पढने में बहुत तेजस्वी थे । अतः कुछ शिक्षकों ने ऐसी सिफारिश की कि उन्हें अंग्रेजी पाठशाला में रखा । इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लक्ष्मीचंदभाई ने बालक नेमचंद को पीतांबर मास्टर की अंग्रेजी पाठशाला में बैठाया । नेमचंद ने अंग्रेजी पाठशाला में तीन वर्ष तक अभ्यास किया । तत्पश्चात उन्होंने महुवा.
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