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शासन सम्राट : जीवन परिचय.
८१ आगेवान महाराजश्री के पास कदम्बगिरि पहुँचे और चातुर्मास महुवा में ही करने के लिए हठपूर्वक आग्रह किया । बल्कि उन्होंने महाराजश्री को बताया कि आपकी प्रेरणा से महुवा में दो नूतन जिन मंदिर हुए हैं उनका काम पूर्ण होने को है अतः उसमें प्रतिष्ठा भी आपके हाथों ही करवाने की भावना है ।
___ महुवा संघ की प्रार्थना इतनी अधिक थी कि महाराजश्री अस्वीकार न कर सके किन्तु महाराजश्री ने कहा: 'मैं महुवा आ तो रहा हूं । किन्तु प्रतिष्ठा मेरे हाथो नही होनेवाली है ।' महाराजश्री के इस वचन में जैसे कोई गूढ भविष्य का संकेत था ।
. उसके पश्चात् महाराजश्री ने चैत्रमास के कृष्णपक्ष में कदम्बगिरि से डोली में विहार किया और लगभग पन्द्रह दिन में वे महुआ पधारे । महुवा के नगरजनों ने जैन अजैन सर्वलोगो ने भावोल्लासपूर्वक उनकी अगवानी की । महुवा बंदर होने के कारण बैसाख महिने की गरमी महारजश्री को कष्टकर न हुई ।
शरीर की अशक्ति और अस्वस्थता के कारण व्याख्यान की जिम्मेदारी महारजश्री के तीन मुख्य शिष्यश्री उदयसूरि, श्रीनंदनसूरि, और श्रीअमृतसूरि ने स्वीकार कर ली । पर्युषण पर्व की आराधाना भी अच्छी तरह चलने लगी । पर्युषण के चौथे दिन दोपहर को आकाश में सूर्य के आसपास धुंधले (मटमैले) रंग का जैसे गोलाकार तैयार होगया हो ऐसा लगा । यह एक अशुभ संकेत था । एक किंवदन्ति है कि आकाश में कुंडलाकार मलक में हाहाकार । संवत्सरी