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शासन सम्राट : जीवन परिचय.
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मारवाड में विहार :
जावाल के चातुर्मास के बाद महाराज श्री मारवाड और मेवाड में विचरे । उन्होंने वरकाणा, वीजोवा, नादोल, नाडलाई, घाणेराव, भूछाला महावीर, देसूरी, सांखिया, गढबोल इत्यादि स्थलों का विहार किया । उन दिनों में इन कुछ क्षेत्रों में विहार की, शुद्ध आहार पानी की, रात्रि विश्राम करने की बहुत तकलीफ थी । मूर्तिपूजकों के घर कम थे । अन्य समुदायों के साथ संघर्ष चलता था । महाराज श्री ने इन सभी स्थलों पर विचरण-करके अपनी व्याख्यानशैली से और व्यक्तिगत मिलने आनेवालों को सुंदर ढंग से समझाकर बहुतों का हृदय-परिवर्तन करवाया । जहां-जहां शास्त्रार्थ के लिए चुनौती देने की स्थिति उठती वहां अन्य पक्ष अंतिम समय उपस्थित न रहता था । गढबोल में तो अगले वर्ष अन्य पक्ष की ओर से तीर्थंकर भगवान की प्रतिमा को कीले मारे गए थे । वहां महाराज श्री ने अपनी सूझ-बूझ और दीर्घदृष्टि से काम लेकर अन्य पक्ष के लोगों को शांत कर दिया था । बहुत से स्थान पर कई परिवारों को सच्चे धर्म की ओर मोडा था । भिन्न-भिन्न स्थलों पर विहार - यात्रा कर महाराज श्री चातुर्मास सादडी में किया । जेसलमेर का ६ 'री' पालित संघ :
वि.सं. १९७२ के सादडी के चातुर्मास के दौरान सिरोही राज्य के पालडी गांव में दो श्रेष्ठी महाराजश्री के पास आए । उन्होंने महाराजश्री से प्रार्थना की कि सिद्धाचल का ६'री' पालक संघ निकालने