________________
शासन सम्राट: जीवन परिचय.
४५
कपडवंज का चातुर्मास पूर्ण होते ही महाराज श्री अहमदाबाद पधारे उस दौरान समाचार आए कि खेडा में उनके शिष्य मुनि यशोविजयजी की तबियत बहुत गंभीर हो गई है और वे गुरु महाराज के दर्शन के इच्छुक है । अत: महाराज श्री ने खेडा की ओर विहार किया । किन्तु वे पहुंचे उससे पूर्व यशोविजयजी कालधर्म को प्राप्त हुए । इस तरह उनका असमय कालधर्म होने पर एक तेजस्वी शिष्यरत्न महाराज श्री ने खो दिया ।
महाराज श्री अहमदाबाद वापस आए । उनके अन्य शिष्य भी अहमदाबाद आ पहुंचे । इस समय दीक्षा के प्रसंग मनाए गए । तत्पश्चात तीर्थ रक्षा के संदर्भ में शत्रुंजय, गिरनार, समेतशिखर, तारंगाजी देशी राज्यों की मध्यस्थी के कारण कोर्ट में जो केस चल रहे थे, महाराज श्री उस संदर्भ में संघों को तथा आणंदजी कल्याणजी की पेढी को आवश्यक मार्गदर्शन देते रहे । इसमें महाराज श्री को कुदरती रूप से प्राप्त कानूनी सुझ और दक्षता के दर्शन होते थे । उनकी ' सलाह अवश्य सच होती थी । जो लोग ये अभिप्राय रखते थे कि साधु महाराजों को कानून की बात क्या समझ में आए? ऐसे बेरिस्टरों को भी यह स्वीकार करना पडता था कि इस विषय में महाराज श्री गहरी समझ रखते हैं । एक बार डो. हर्मन जेकोबी भारत आए तब कहा था कि विजयनेमिसूरि और विजयधर्म सूरि ये दो महात्मा यदि साधु जीवन में न होते तो कोई बड़े राज्य के दीवान होते । समग्र राज्यतंत्र चला सके ऐसी बुद्धि, व्यवहार, दक्षता, मनुष्य की पहचान और दीर्घदृष्टि उनके पास है ।