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________________ शासन सम्राट: जीवन परिचय. २९ में कई तार किए । उन दिनों जल्दी समाचार प्राप्त करने के लिए एक मात्र साधन तार ही था और उसका प्रयोग भी लोग मजबूरी में ही करते थे । वरतेज जैसे छोटे गांव में चौबीस घंटे में इतने सारे तार आए अतः पोस्ट मास्टर को बहुत आश्चर्य हुआ । महाराजश्री का स्वास्थ्य सुधरा नहीं है यह मालूम होने पर मनसुखभाई ने अपने अहमदाबाद के डोक्टर को वरतेज भेजा । उस समय मनसुखभाई के अपने पुत्र को ज्वर था किन्तु गुरुमहाराज के महत्व को समझते हुए उन्होंने डोक्टर को वहां भेजा था । डोक्टर के आने से यथोचित उपचार होने पर महाराज श्री का ज्वर उतर गया । इससे शेठ निश्चित हुए । वल्लभीपुर में 'गणी' और 'पन्यास' पदवी : चातुर्मास पूर्ण होते ही पंन्यासजी महारज और अन्य मुनिवर वला (वल्लभीपुर) पधारे । वला का प्राचीन ऐतिहासिक नाम वल्लभीपुर महाराजश्री ने प्रचलित किया था । वल्लभीपुर के ठाकुर साहेब श्री वखतसिंह महाराज श्री के अनन्य भक्त थे । महाराजश्री के 'भगवतीसूत्र' के जोग पूरे होने आए थे । अतः उन्हें गणि तथा पंन्यास की पदवी वल्लभीपुर में दी जाय ऐसा उनका विशेष आग्रह था । अंततः वही निर्णय हुआ । महाराजश्री के दूसरे अनन्य भक्त अहमदाबाद के शेठ मनसुखभाईने इस महोत्सव के समस्त आदेश स्वयं प्राप्त करलिए । पंन्यास श्री गंभीरविजयजी महाराज ने चतुर्विध संघ के समक्ष संपूर्ण विधी करके महाराजश्री को 'गणि' पदवी और उसके बाद थोडे दिन
SR No.002300
Book TitleShasan Samrat Jivan Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah, Pritam Singhvi
PublisherParshv International Shaikshanik aur Shoudhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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