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शासन सम्राट: जीवन परिचय.
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में कई तार किए । उन दिनों जल्दी समाचार प्राप्त करने के लिए एक मात्र साधन तार ही था और उसका प्रयोग भी लोग मजबूरी में ही करते थे । वरतेज जैसे छोटे गांव में चौबीस घंटे में इतने सारे तार आए अतः पोस्ट मास्टर को बहुत आश्चर्य हुआ । महाराजश्री का स्वास्थ्य सुधरा नहीं है यह मालूम होने पर मनसुखभाई ने अपने अहमदाबाद के डोक्टर को वरतेज भेजा । उस समय मनसुखभाई के अपने पुत्र को ज्वर था किन्तु गुरुमहाराज के महत्व को समझते हुए उन्होंने डोक्टर को वहां भेजा था । डोक्टर के आने से यथोचित उपचार होने पर महाराज श्री का ज्वर उतर गया । इससे शेठ निश्चित हुए ।
वल्लभीपुर में 'गणी' और 'पन्यास' पदवी :
चातुर्मास पूर्ण होते ही पंन्यासजी महारज और अन्य मुनिवर वला (वल्लभीपुर) पधारे । वला का प्राचीन ऐतिहासिक नाम वल्लभीपुर महाराजश्री ने प्रचलित किया था । वल्लभीपुर के ठाकुर साहेब श्री वखतसिंह महाराज श्री के अनन्य भक्त थे । महाराजश्री के 'भगवतीसूत्र' के जोग पूरे होने आए थे । अतः उन्हें गणि तथा पंन्यास की पदवी वल्लभीपुर में दी जाय ऐसा उनका विशेष आग्रह था । अंततः वही निर्णय हुआ । महाराजश्री के दूसरे अनन्य भक्त अहमदाबाद के शेठ मनसुखभाईने इस महोत्सव के समस्त आदेश स्वयं प्राप्त करलिए । पंन्यास श्री गंभीरविजयजी महाराज ने चतुर्विध संघ के समक्ष संपूर्ण विधी करके महाराजश्री को 'गणि' पदवी और उसके बाद थोडे दिन