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________________ शासन सम्राट: जीवन परिचय. २४ थी और बाद में मिल गई थी उसकी भी प्रतिष्ठा महाराज श्री के हाथों धामधूम से की गई । डॉ. जेकाबी की शंकाओं का समाधान : खंभात में उस समय एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना घटित हुई । जर्मनी के विद्वान डॉ. हर्मन जेकोबी ने पाश्चात्य जगत को जैन धर्म का परिचय उस समय करवाया था । जर्मनी में रहते हुए वहाँ उपलब्ध हस्तप्रत के आधार पर उन्होंने जैन धर्म के कुछ ग्रंथों का संशोधन संपादन किया परन्तु उनके आचारांग ने भारत के जैनों में विवाद उत्पन्न किया, क्योंकि उन्होंने ऐसा प्रतिपादित किया था कि जैन आगमों में मांसाहार का विधान है । अतः महाराजश्री और मुनि आनंदसागरजी (सागरजी महाराज) ने साथ मिलकर 'परिहार्य -. मीमांसा' नामक पुस्तिका लिखकर डॉ. जेकोबी के विधानों का आधार सहित विरोध किया । डो. जेकोबी जब भारत आए तब महाराज श्री से मिलने खंभात गए थे । वे ढेर-सी शंका लेकर उपस्थित हुए थे किन्तु दो दिन ही रुकने से उनकी मुख्य-मुख्य शंकाओं का समाधान हो गया । इसीलिए उन्होंने अपनी भूलों का लेखित स्वीकार किया थां" । पेटलाद में जीवदया की प्रवृत्ति : वि.सं. १९५५ का चातुर्मास खंभात में कर महाराज श्री पेटलाद पधारे । वि.सं. १९५६ का साल था । उस वर्ष अकाल पडा था, उसे छप्पनिया दुकाल के रूप में जाना गया । कुछ स्थानों पर
SR No.002300
Book TitleShasan Samrat Jivan Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah, Pritam Singhvi
PublisherParshv International Shaikshanik aur Shoudhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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