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शासन सम्राट : जीवन परिचय.
पिताश्री लक्ष्मीचंद ने जानी तो उन्होंने नेमचंदभाई के इधर-उधर आनेजाने पर कड़ा पहरा लगा दिया । इससे नेमचंदभाई की उलझन बढ़गई। लक्ष्मीचंदभाई को लगा कि पुत्र नेमचंद का दीक्षाग्रहण करने का विचार दृढ है, किन्तु अभी कच्ची उम्र के और वह नासमझ है । कुछ बातें घर के स्वजनों की अपेक्षा कोई अन्य समझाए तो उसका प्रभाव अधिक होता है । अतः लक्ष्मीचंदभाई ने अपने एक मित्र रूपशंकरभाई से आग्रह किया कि वे नेमचंद को समझाए । रूपशंकरभाई ने एक दिन नेमचंदभाई को अपने घर बुलाकर बात ही बात में समझाने की कोशिष की किन्तु वे असफल रहे । रूपशंकरभाई को विश्वास हो गया कि नेमचंदभाई दीक्षा लेने के अपने विचार में दृढ है । फिरभी महुवाके न्यायाधीश यदि समझाएँ तो अधिक प्रभाव पडेगा । लक्ष्मीचंदभाईसे पूछकर वे नेमचंदभाई को न्यायाधीशके घरले गए । न्यायाधीश ने साम, दाम, भेद और दंड हर तरह से नेमचंदभाई को समझाने का प्रयत्न किया और धमकी दी कि यदि वे दीक्षा लेंगे तो उनकी धरपकड कर उनके हाथ-पांव में बेडी पहनाकर उन्हें कैद में बंद कर दिया जाएगा । किन्तु न्यायाधीश ने देखा ऐसी धमकियों का इस किशोर पर कोई प्रभाव न था । इतना ही नही किन्तु किशोर का प्रत्येक उत्तर तर्कयुक्त बुद्धिगम्य, सत्य और सचोट था । अतः जब वे वापस लौट रहे थे तब न्यायाधीश ने रूपशंकरभाई को किनारे
ले जाकर बताया कि यह लड़का किसी भी तरह दीक्षा लिए बिना __ नहीं रहेगा ।