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________________ 70 निष्कर्ष इस प्रकरण में जैन संस्कृति, धर्म, आगम तथा श्वेतांबर, दिगंबर साहित्य का संक्षेप में विवेचन किया गया है। साहित्य की विशदरूप में चर्चा करने का एक विशेष प्रयोजन है इस साहित्य में तत्वज्ञान, आचारव्रत परंपरा, साधना की विविध पद्धतियाँ, तपश्चरण स्वाध्याय, ध्यान इत्यादि अनेक विषयों पर अनेक दृष्टियों से व्याख्या हुई है। किसी भी विषय पर गहन अध्ययन, अनुशीलन और अनुसंधान के लिए तत्संबधी संस्कृतदर्शन और साहित्य का आधार बहुत आवश्यक है। ___ जैनधर्म में कर्म सिद्धांत आध्यात्मिक जगत का मूलाधार है। आगम ग्रंथों में कर्म विषयक वर्णन स्थान-स्थान पर दिया गया है। साधक जीवन हो या गृहस्थ जीवन हो कर्म के मर्म को समझना नितान्त आवश्यक है। ____ मेरे द्वारा शोध हेतु स्वीकृत 'जैन धर्म में कर्म सिद्धांत' इस विषय पर अनुसंधेय सामग्री की दृष्टि से इन सबका उपयोग अवश्य होगा। अत: इन सब पर सामान्य रूप में प्रकाश डालना अपेक्षित मानते हुए इस प्रकरण में इन सबका संक्षेप में निरुपण किया गया है। जो आगे के प्रकरण में विवेचनीय, गवेषणीय और परीक्षणीय विषयों की दृष्टि से अनुकूल पृष्ठभूमि सिद्ध होगी।
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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