SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषयानुक्रमणिका CERTIFICATE DECLARATION ऋणनिर्देश (४) प्रस्तावना १-१३ प्रथम प्रकरण १४-७४ कर्म सिद्धांत के मूल ग्रंथ आगम वाङ्मय . मानव जीवन और धर्म १८, जीवन की परिभाषा १८, अध्यात्म एवं धर्म की भूमिका १८, भारतीय संस्कृति की त्रिवेणी १९, वैदिक संस्कृति २०, श्रमण संस्कृति २१, बौद्ध धर्म२२, जैन धर्म २२, इतिहास एवं परंपरा २३ , जैन धर्म की सार्वजनीनता २४, जैन धर्म का अंतिम लक्ष्य : शाश्वत शांति २५, कालचक्र २५, समीक्षा २६, अवसर्पिणी काल के छह आरे २६, उत्सर्पिणी काल के छह आरे २७, समीक्षा २८, तीर्थंकर एवं धर्मतीर्थ २८, तीर्थंकरोपदेश आगम २९, आगमों की भाषा ३०, भगवान महावीर द्वारा धर्मदेशना ३१, आगमों का महत्त्व ३२, आगमों का संकलन ३२, प्रथम वाचना ३२, द्वितीय वाचना ३३, तृतीय वाचना ३३, आगमों का विस्तार ३४, आगम : अनुयोग ३४, चरणकरणानुयोग ३४, धर्मकथानुयोग ३४, गणितानुयोग ३५, द्रव्यानुयोग ३५, अंग आगम परिचय ३५, आचारांगसूत्र ३६, सूत्रकृतांगसूत्र ३७, स्थानांगसूत्र ३८, समवायांगसूत्र ३९, व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ३९, ज्ञाताधर्मकथासूत्र ४०, उपासकदशांगसूत्र ४०, अन्तकृत्दशांगसूत्र ४१, अनुत्तरौपपातिकसूत्र ४१, प्रश्रव्याकरण ४१, विपाकसूत्र ४२, दृष्टिवाद ४२, उपांग परिचय ४२, औपपातिकसूत्र ४३,राजप्रश्रीयसूत्र ४३, जीवाजीवाभिगमसूत्र ४४, प्रज्ञापनासूत्र ४४, जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र ४४, सूर्यप्रज्ञप्ति-चंद्रप्रज्ञप्ति ४५, निरयावलिका-कल्पिकासूत्र ४५, कल्पावतंसिकासूत्र ४६, पुष्पिकासूत्र ४६, पुष्पचूलिकासूत्र ४६, वृष्णिदशा ४६, चार मूलसूत्र परिचय ४६, दशवैकालिकसूत्र ४७, उत्तराध्ययनसूत्र ४८, नंदीसूत्र ४८, अनुयोगद्वारसूत्र४९, चार छेदसूत्र ४९, व्यवहारसूत्र ५०, बृहत् कल्पसूत्र ५०, आगम गृह ५१, निशीथसूत्र ५१, दशाश्रुतस्कंधसूत्र ५२, आवश्यकसूत्र ५२, प्रकीर्णक आगम साहित्य ५३, चउसरण : चतुःशरण प्रकीर्णक ५४, आउर-पच्चक्खाण : आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक ५५, महापच्चक्खाण : महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक ५५, भत्तपरिण्णा : भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक ५५, तंदुलवेयालिय : तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक५६, संथारग(संस्तारक) प्रकीर्णक ५६, गच्छायार : गच्छाचार प्रकीर्णक ५७, गणिविज्जा : गणिविद्या प्रकीर्णक ५७, देवाधिदेव देवेन्द्रस्तव प्रकीर्णक ५७, वीरत्थओ : वीरस्तुति प्रकीर्णक ५८, मरणसमाही (मरणसमाधी) ५८, महानिशीथ छेदसूत्र ५९, जीयकप्पसुत्त जीतकल्पसूत्र ५९, पिंडनिज्जुत्ति, ओहनिज्जुत्ति ५९, ओघनियुक्ति ६०, पिण्डनियुक्ति ओघनियुक्ति ६०, आगमों पर व्याख्या साहित्य ६०, नियुक्ति ६१, भाष्य ६१,
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy