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________________ ऋण निर्देश आज मेरा Ph.D. का प्रबंध पूर्णता की ओर पहुँचा है। ऋणनिर्देश करने में औपचारिकता नहीं हो सकती। विद्या वाचस्पति (Ph.D.) इस उपाधि तक पहुँचने के पूर्व और प्राप्त करने तक अनेक व्यक्ति, संस्थाएँ, ग्रंथालयों की बहुमूल्य मदद होती है। इन सब के प्रति मेरा आदरभाव ऋण निर्देश से व्यक्त करती हूँ। प्रबंध के अभ्यास के रूप में भले ही मेरा नाम हो, परंतु उसके पीछे अनेकों की मेहनत, सहकार्य और सदिच्छाएँ हैं। विश्वसंत जिनशासन चंद्रिका दादीजी म.सा. पू. उज्ज्वलकुमारीजी म.सा. की मैं अत्यंत ऋणी हूँ। जिन्होंने मुझे Ph.D. तक पहुँचाने में अदृश्य रूप से सहायता की है। उज्ज्वल संघ प्रभाविका प्रखर व्याख्याता साध्वी रत्ना गुरुणी मैया पू. डॉ. धर्मशीलाजी महासतीजी तथा नवकार साधिका पू. डॉ. चारित्रशीलाजी महासतीजी को मैं नहीं भूल सकती जिन्होंने मेरे इस शोध प्रबंध के लिए अथाह मेहनत की है। उनके आशीर्वाद से मैं आज यहाँ तक पहुँच सकी हूँ। मैं उनका ऋण कृतज्ञतापूर्वक व्यक्त करती हूँ। मेरे शोध प्रबंध के मार्गदर्शक, समय-समय पर बहुमूल्य सेवा देने वाले पूना विद्यापीठ के डॉ. कांचन मांडे का ऋण मैं कृतज्ञतापूर्वक व्यक्त करती हूँ। भावी जीवन में भी इन सभी की सदिच्छा मेरे लिए प्रेरणादायी बनी रहे। यही शुभकामना है।
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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