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अन्य दर्शन में त्रिविध साधनामार्ग
जैन दर्शन के समान ही बौद्ध दर्शन में भी त्रिविध साधना मार्ग का विधान किया है। शील, समाधि और प्रज्ञा बौद्ध दर्शन का यह त्रिविध साधनामार्ग भी जैन दर्शन के त्रिविध साधनामार्ग के समानार्थक है। तुलनात्मक दृष्टि से शील को सम्यक्चारित्र, समाधि को सम्यग्दर्शन और प्रज्ञा को सम्यक्ज्ञान के रूप में माना जा सकता है। सम्यग्दर्शन यह समाधि से इसलिए तुलनीय है कि दोनों में चित्त विकल्प नहीं है।
गीता में भी ज्ञानमार्ग, कर्ममार्ग और भक्तिमार्ग के रूप में त्रिविध साधनामार्ग का उल्लेख है। हिंदु परंपरा में परमसत्ता के तीन पक्ष सत्यं-शिवम्-सुंदरम् माने गये हैं। इन तीन पक्षों की उपलब्धि के लिए उन्होंने त्रिविध साधनामार्ग का विधान किया है। सत्य की उपलब्धि के लिए ज्ञान, सुंदर की उपलब्धि के लिए भाव या श्रद्धा और शिव की उपलब्धि के लिए सेवा या कर्म माना गया है।
उपनिषद् में भी श्रवण, मनन और निदिध्यासन के रूप में भी त्रिविध साधनामार्ग प्रस्तुतीकरण किया है। पाश्चात्य परंपरा में भी तीन नैतिक आदेश उपलब्ध हैं।
१) स्वयं का स्वीकार करो। (Accept thyself) २) स्वयं को पहचानो। (Know thyself)
३) स्वयं बनो। (Be thyself) पाश्चात्य चिंतन के ये तीन नैतिक आदेश दर्शन, ज्ञान और चारित्र के समानार्थी हैं। आत्मस्वीकृति में श्रद्धा का तत्त्व, आत्मज्ञान में ज्ञान का तत्त्व और आत्म निर्माण में चारित्र का तत्त्व अंतर्भूत है।३१६