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________________ 327 होने पर होती है। वस्तुतः बंध के कारणों का और पूर्व संचित कर्मों का पूर्णरूप से क्षय होना ही मोक्ष है। इस तात्विक भूमिका में आत्मा का अपने शुद्ध स्वरूप में चिरकाल के लिए स्थिर होना ही मोक्ष या मुक्ति है । २३३ मनुष्य- तिर्यंच, छोटा-बडा, अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष आदि भेद कर्मों के कारण होते हैं। जब कर्मों का संपूर्ण रूप से क्षय हो जाता है, तब ये भेद नहीं रहते, फिर भी जैन दर्शन में मुक्त जीव के भेद की जो कल्पना की गई है, वह लोक व्यवहार की दृष्टि से की गई है। सिद्धों १५ भेद मुक्त होने की पूर्व स्थिति के सूचक हैं । पूर्वावस्था को ध्यान में रखकर ही ये भेद बताये गये हैं । वस्तुतः मुक्त जीवों में छोटा बडा आदि किसी भी प्रकार का भेद नहीं है । २३४ मुक्त जीव आध्यात्मिक समता और समानता के साम्राज्य में रमते हैं। मोक्ष या मुक्ति यह कोई स्थान विशेष नहीं है। आत्मा के शुद्ध, चिन्मय स्वरूप की प्राप्ति ही मोक्ष है। कर्म से मुक्त होने पर अर्थात् आत्मा के सारे बंधन नष्ट हो जाने पर मुक्त आत्मा लोकाग्र भाग पर स्थित होती है। इस लोकाग्र को व्यवहार भाषा में सिद्धशिला कहते हैं । एक द्रव्य है और यह द्रव्य 'लोक' के ऊर्ध्व, मध्य और अधोभाग में जन्म मरण करता रहता है। जीव का स्वभाव ऊर्ध्वगामी होने से मुक्त अवस्था में लोकाग्र पर स्वयं पहुँच जाता है। दीपक की ज्योति की प्रवृत्ति ऊपर की ओर यानी ऊर्ध्वगामी है। कर्म के कारण उसमें जडता आती है, परंतु कर्म मुक्त होते ही स्वाभाविक रूप 'आत्मा की ऊर्ध्वगति होती है । २३५ जब तक कर्म पूर्णत: नष्ट नहीं होते तब तक आत्मा का स्वभाव शुद्ध नहीं होता । जिस प्रकार बादल दूर होते ही सूर्य पुनः अपने प्रकाश से चमकने लगता है उसी प्रकार आत्मा से दूर होते ही आत्मा अपने शुद्ध स्वभाव से पुन: चमकने लगती है, परंतु यहाँ इतना ध्यान में रखना चाहिए कि सूर्य पर फिर कभी बादल आ सकते हैं, परंतु आत्मा एक बार कर्म मुक्त होने पर वह फिर कभी कर्म युक्त नहीं हो सकती । मोक्ष प्राप्ति के उपाय आगम में मोक्ष प्राप्ति के चार उपाय बताये गए हैं- ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप । ज्ञान से तत्त्व का आकलन होता है, दर्शन से तत्त्व पर श्रद्धा होती है । चारित्र से आने वाले कर्मों को रोका जाता है, और तप के द्वारा बंधे हुए कर्मों को रोका जाता है, और कर्मों का क्षय होता है। इन चार उपायों से कोई भी जीव मोक्ष प्राप्ति कर सकता है । २३६ इस साधना के लिए जाति, वेष आदि कोई भी बाधक नहीं है। वस्तुतः जिसने कर्मरूपी बंधन को तोडकर आत्मगुण को प्रकट किया है। वही मोक्ष का सच्चा अधिकारी है। उत्तराध्ययन सूत्र में भी मोक्ष प्राप्ति चार उपाय बताये हैं । २३७ कुल,
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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