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________________ 323 ___सामान्य रूप से ग्रहण किये कर्म पुद्गल का जो स्वभाव होता है उसे ही प्रकृतिबंध कहते हैं। वैसे तो प्रकृतिबंध की अनेक व्याख्याएँ हैं, परंतु उन सब का भावार्थ एक ही है।२०७ स्थितिबंध . प्रत्येक प्रकृति की अवस्थिति काल द्वारा नापी जाती है। प्रत्येक प्रकृति विशिष्ट काल तक रहती और बाद में विलीन होती है। इस प्रकार स्थितिबंध कर्म प्रकृति के कालमान को निश्चित करता है। स्वभाव बनने पर उस स्वभाव की विशिष्ट समय तक रहने की जो मर्यादा होती है, उसे 'स्थितिबंध' कहते हैं। सामान्यतया कर्म विशेष की आत्मा के साथ रहने की जो अवधि होती है, उसे स्थितिबंध कहते हैं।२०८ ज्ञानावरणादि आठ कर्मों का आत्मप्रदेशों के साथ बंध होने पर जब तक वे अपने स्वभाव को नहीं छोडते और कर्मरूप रहते हैं, उस काल मर्यादा को भी स्थितिबंध कहते हैं।२०९ अवस्थान काल का नाम स्थिति है। गति से विपरीत स्थिति होती है। जितने समय तक वस्तु रहती है, वह स्थिति है। जिसका जो स्वभाव है उससे न बदलना स्थिति है। जिस प्रकार बकरी, गाय, भैंस आदि पशुओं के दूध का स्वभाव अपने माधुर्य स्वभाव से च्युत न होना • स्थिति है, उसी प्रकार ज्ञानावरण आदि कर्मों का अपने स्वभाव से च्युत न होना स्थिति है।२१० योग के कारण से कर्मरूप में परिणत हुए पुद्गल स्कंध का जीव में एक रूप से रहने की कालमर्यादा को स्थिति कहते हैं। २११ ऊपर की व्याख्याएँ अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग रूप में दी हुई हैं, परंतु उन सब का भावार्थ एक ही है, वह है- कर्म की आत्मा के साथ रहने की अवधि स्थितिबंध है। अनुभागबंध ज्ञानावरणादि कर्म के शुभ-अशुभ रस को अनुभाग बंध कहते हैं। विपाक के समय कर्म जिस प्रकार का रस देगा, उसे अनुभागबंध कहते हैं। यह बंध प्रत्येक प्रकृति का अपनाअपना होता है। जैसा रस को जीव बाँधता है, वैसा ही उदय में आता है। वस्तुत: स्वभाव निर्मिति के साथ ही उसमें तीव्रता मंदता आदि रूपों से फलानुभाव कराने वाली विशेषता भी निर्मित होती है। उस विशेषता को ही 'अनुभागबंध' कहते हैं।२१२ कर्म का रस शुभ है या अशुभ है, तीव्र है या मंद है, यह दिखाना ‘अनुभाग-बंध' का कार्य है। जिस प्रकार बकरी, गाय और भैंस आदि के दूध में तीव्र, मंद और मध्यम रूप से रसविशेष होता है। उसी प्रकार कर्म पुद्गल की तीव्र या मंद फलदान शक्ति ही 'अनुभागबंध' है।२१३
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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