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८) विनय तप
अभ्यंतर तप का दूसरा भेद विनय तप है। विनय का संबंध हृदय से है। यह आत्मिक गुण है। जिसका हृदय कोमल है, वही विनय तप का आचरण कर सकता है। विनय का अर्थ है मन तथा आत्मा का अनुशासन। विनयशील व्यक्ति पाप एवं असत् आचरण से डरता है विनीत की व्याख्या करते हुए कहा है, 'जो लज्जाशील है और इन्द्रियों का दमन करने वाला है, उसे सुविनीत कहते हैं ।१५१ - जिससे आठ कर्मों का क्षय होता है, उसे विनय कहते हैं, अर्थात् विनय आठ कर्मों को दूर करता है और उससे चार गतियों का अंत करने वाले मोक्ष की प्राप्ति होती है। विनय शब्द तीन अर्थों में प्रयुक्त होता है १) अनुशासन,१५२ २) आत्मसंयम शील (सदाचार)१५३ तथा ३) नम्रता और सद्व्यवहार।१५४ भगवतीसूत्र में विनय के सात भेद बताये हैं वे इस प्रकार है
१) ज्ञानविनय, २) दर्शनविनय, ३) चारित्र्यविनय, ४) मनविनय,
५) वचनविनय, ६) कायाविनय, ७) लोकोपचारविनय। १) ज्ञानविनय - ज्ञानी लोगों के साथ विनयपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। २) दर्शनविनय - सम्यक्त्व का आदर करना और सम्यक्दृष्टि रखना। साथ ही गुरुजनों की
सेवा करना। ३) चारित्र्यविनय - चारित्र्यसंपन्न व्यक्तियों के साथ विनयपूर्ण व्यवहार करना। ४) मनविनय - मन पर अनुशासन रखना। ५) वचनविनय - सुंदर सौम्य सर्वजन हितकारी वचन बोलना। ६) कायाविनय - उपयोगपूर्वक चलना, रुकना, ऊठना, बैठना अर्थात् यत्नापूर्वक इन्द्रियों
की हलचल करना। ७) लोकोपचारविनय - इसे लोक व्यवहार भी कहते हैं सत्य प्रिय और मधुर भाषा बोलना।
साथ ही किसी के भी साथ द्वेषपूर्ण व्यवहार न करना।१५५ विनय का फल
मोक्ष है। आगमकारों ने भी उद्घोषित किया है कि जिस प्रकार वृक्ष का उद्गम मूल से होता है और उसका अंतिम फल रस होता है, उसी प्रकार धर्मरूपी वृक्ष का मूल विनय और उसका अंतिम फल रस अर्थात् मोक्ष है।१५६ विनय का जीवनव्यापी प्रभाव बताते हुए कहा है कि जिस प्रकार सुंगध के कारण चंदन की महिमा है, सौम्यता के कारण चंद्रमा का गौरव है,