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. तात्पर्य यह है, मन-वचन-काया द्वारा मायावी बनने से जीव के अशुभ नाम कर्म का बंध होता है। नाम कर्म २८ प्रकार से भोगे शुभ नाम कर्म १४ प्रकार से भोगे
१) इष्ट शब्द, २) इष्ट रूप, ३) इष्ट गंध, ४) इष्ट रस, ५) इष्ट स्पर्श, ६) इष्ट गति, ७) इष्ट स्थिति, ८) इष्ट लावण्य, ९) इष्ट यशोकीर्ति, १०) इष्ट उत्थान, ११) इष्ट स्वर, १२) कान्त स्वर,
१३) प्रिय स्वर, १४) मनोज्ञ स्वर। अशुभ नाम कर्म १४ प्रकार से भोगे ।
१) अनिष्ट शब्द, २) अनिष्ट रूप, ३) अनिष्ट गंध, ४) अनिष्ट रस, ५) अनिष्ट स्पर्श, ६) अनिष्ट गति, ७) अनिष्ट स्थिति, ८) अनिष्ट लावण्य, ९) अनिष्ट यशोकीर्ति, १०) पराक्रम शक्तिहीनता, ११) अनिष्ट स्वर, १२) अक्रान्त स्वर, १३) अप्रिय स्वर,
१४) अमनोज्ञ स्वर।१७१ नाम कर्म की स्थिति
जघन्य आठ मुहूर्त की, उत्कृष्ट बीस कोडाकोडी सागरोपम की। अबाधा काल दो हजार वर्ष का।१७२ नाम कर्म का प्रभाव
इस संसार में एक मनुष्य काला-कलूटा, बेडौल, बीभत्स आकृति वाला है, तो एक मनुष्य गुलाब के फूल जैसा सुंदर एवं चित्ताकर्षक आकृति वाला क्यों है? इसका कारण नाम कर्म है। शरीर और शरीर से संबंधित अंग प्रत्यंग के कण-कण की रचना करने वाला नाम कर्म है। इन्द्रियाँ, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, यश-अपयश, सुस्वर-दुस्वर, सौभाग्य और दुर्भाग्य आदि देनेवाला नाम कर्म है। इसी कर्म के उदय से जीव विविध गतियों को प्राप्त करता है। शुभ कर्म का उदय हो तो जीव को इष्ट वस्तु का संयोग प्राप्त होता है और अशुभ नाम का उदय हो तो अनिष्ट वस्तु का संयोग (निमित्त) मिलता है। . इस प्रकार नाम कर्म का स्वरूप और कारण बताकर यह स्पष्ट सिद्ध हो जाता है, कि समस्त जीवों को शरीर और शरीर संबंधित जो भी वस्तुएँ मिली हैं वे किसी परमात्मा द्वारा नहीं अपितु अपनी आत्मा के द्वारा किये गये कर्मों से प्राप्त हुई है। यदि आत्मा इन कर्मों से