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________________ 205 २) संयमासंयम कुछ संयम और कुछ असंयम । इसे देशविरति चारित्र कहते हैं। श्रावक के व्रत में स्थूल रूप से हिंसा, झूठ, चोरी आदि का प्रत्याख्यान होता है, किन्तु सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवों की आरंभजा हिंसा का सर्वथा त्याग नहीं होता। ऐसे संयमासंयम का पालन करने वाला गृहस्थ भी देवायु का बंध करता है। ३) बालतप इसका अर्थ है अज्ञान युक्त तप या ज्ञान रहित तप । जिस तप में आत्मशुद्धि का लक्ष्य न होकर अन्य कोई भौतिक या लौकिक लक्ष्य हो, उसे बाल तप कहते हैं। सम्यग्ज्ञान के अभाव में किया गया यह अज्ञान तप भी देवायु का बंध कराता है। आगमों में ऐसे अ बाल तपस्वियों का वर्णन है । तामली तापस, कमठ, अग्निशर्मा आदि भी बालतप के फलस्वरूप देवगति में गये ! अकाम निर्जरा अनिच्छा, दबाव, भय, पराधीनता, लोभवश, मजबूरी या भूख आदि के कष्ट को सहन करना अकाम निर्जरा है । यद्यपि नारकी जीव भयंकर कष्ट सहते हैं। उन्हें अनिच्छा से कष्ट सहना पडता है तथापि सम्यक्ज्ञान न होने से वे कष्ट के समय में समभाव एवं आत्मचिंतन नहीं कर पाते। मजबूरी में कष्ट सहने से उनकी अकाम निर्जरा होती है किन्तु साथ ही दुर्ध्यान होने से वे देवायु का बंध नहीं कर पाते। इस प्रकार सोलह कारणों से चार आयु का बंध होता - है । उसका फल है उस आयुष्य की प्राप्ति होना । १४७ आयुष्य कर्म ४ प्रकार से भोगे १) नेरिय - नरक का आयुष्य भोगते हैं । २) तिर्यंच - तिर्यंच का आयुष्य भोगते हैं। ३) मनुष्य - मनुष्य का आयुष्य भोगते हैं। १५० ४) देव - देवता का आयुष्य भोगते हैं । १४८ उत्तराध्ययन सूत्र, १४९ प्रज्ञापना सूत्र, ' और तत्त्वार्थसूत्र १५१ में भी यही कहा है। आत्मा आयुष्य कर्म कब बाँधती है? इस संसार में चार प्रकार के जीव हैं- देव, नारकी, तिर्यंच और मनुष्य । देवों और नारकों का आयुष्य उनकी छह महीने की आयु शेष रहने पर आयु का बंध हो जाता है। मनुष्य और संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय का आयुष्य इस प्रकार से बँधता है, वर्तमान जन्म की निश्चित आयु को तीन भागों में बाँटने पर उनमें से दो भाग बीत जाने के बाद जो शेष रहे आयु उसक
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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