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________________ 203 विशाल वैभव था, किन्तु वे महापरिग्रही नहीं थे, क्योंकि वे अनासक्त थे। जिसके पास संपत्ति न हो परंतु इच्छा आकांक्षा है तो वह भी परिग्रही है संपत्ति, वैभव हो या न हो जहाँ आसक्ति है वहाँ परिग्रह है । मूर्च्छा परिग्रह १३९ ३) मद्यमाँस का सेवन माँस, मछली और अंडे आदि का सेवन करना करवाना भी तीव्र हिंसाकारक परिणाम होने के कारण नरकायु का बंध कराती है । १४० ४) पंचेन्द्रियवध मनुष्य, पशु, पक्षी आदि पंचेन्द्रिय का प्रमत्त योगपूर्वक संकल्प की बुद्धि से वध करना । जो लोग कसाईखाना चलाते हैं, गर्भपात स्वयं करना या दूसरों को भी प्रेरणा देना, उसे नारकीय जीवन प्राप्त होता है । तिर्यंच आयुष्य कर्म ४ प्रकार बाँधे १) माया ( कपट) करना, ३) मृषावाद (असत्य भाषण), .१) माया करना ( कपट करना) २) गूढ माया (रहस्यपूर्ण कपट), ४) खोटा तोल, खोटा माप । कुटिलता रखना या छल कपट करना, मन में कुछ और रखना, बहार कुछ और दिखाना अर्थात् ठग और धोखेबाजी करना तिर्यंचायु का कारण है । उदा. ज्ञाता धर्म कथांग सूत्र में मल्ल भगवती का वर्णन है जिन्होंने माया का सेवन किया था । १४१ २) गूढ माया करना (रहस्यपूर्ण कपट करना) कपट को छिपाना। हृदय में किसी बात को छिपाकर रखना और बाहर में कुछ और दिखाना । धूर्तता और ठगी करने से तिर्यंचायु का बंध होता है। ३) मृषावाद (असत्य भाषण) क्रोध, लोभ, भय और स्वार्थ के कारण मनुष्य असत्य भाषण करता है । असत्य भाषण का परिणाम पशु जीवन प्राप्त होता है। झूठ बोलते समय अनेक दोषों की और कुसंस्कारों की पुष्टि होती है, वह महाघातक है। इस प्रकार तिर्यंचायु का बंध होता है । १४२ ४) झूठा तौल - माप करना अच्छी वस्तु दिखाकर खराब वस्तु देना या तौल माप कर देना । व्यावहारिक जगत में छल कपट करना विश्वासघातक है। धार्मिक जगत में छल कपट महाघातक है । 'सूत्रकृतांग' सूत्र में कहा है ' जो मायापूर्वक आचरण करता है, वह अनन्तबार जन्ममरण करता है । १४३
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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