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________________ 184 सामान्य बोध कराता है। दोनों की सभी बातें प्राय: समान है। अंतर इतना है कि दर्शनावरणीय कर्म की उत्तर प्रकृतियों के भेदों में अवश्य अंतर है। दर्शनावरणीय कर्म छः प्रकार से बांधे १) दंसण पडिणियाए -सम्यक्त्वी का अवर्णवाद बोले तो दर्शनावरणीय कर्म बांधे। २) दंसण निण्हवणियाए- बोध बीज सम्यक्त्व दाता के नाम को छिपावे तो दर्शनावरणीय कर्म बाँधे। ३) दंसण अंतरायेणं - यदि कोई समकित ग्रहण करता हो उसे अंतराय दे दें तो दर्शनावरणीय कर्म बाँधे। ४) दंसण पाउसियाए - समकित तथा सम्यक्त्वी पर द्वेष करे तो दर्शनावरणीय कर्म बाँधे। ५) दंसण आसायणाए - समकित तथा सम्यक्त्वी की असातना करे तो दर्शनावरणीय कर्म बाँधे। ६) दंसणा विसंवायणा जोगेणं - सम्यक्त्वी के साथ खोटा व झूठा विवाद करे तो . दर्शनावरणीय कर्म बाँधे।६८ दर्शनावरणीय कर्म नव प्रकार से भोग १) निद्रा, २) निद्रा-निद्रा, ३) प्रचला, ४) प्रचलाप्रचला, ५) थीणद्धि (स्त्यानर्द्धि), ६) चक्षुदर्शनावरणीय, ७) अचक्षुदर्शनावरणीय, ८) अवधिदर्शनावरणीय, ९) केवलदर्शनावरणीय,६९ उत्तराध्ययनसूत्र,७० तत्त्वार्थसूत्र७१ में और जैनतत्त्वप्रकाश७२ में भी यही बात आयी है। दर्शन के आवरण रूप निद्रा के पाँच कारण १) निद्रा जिस कर्म के उदय से जीव को ऐसी निद्रा आये कि सुखपूर्वक जाग सके अर्थात् जगाने में मेहनत नहीं पड़ती है, ऐसी निद्रा को 'निद्रा' कहते हैं। यह निद्रा प्रगाढ़ नहीं है, इस निद्रा वाले मनुष्य को सुखपूर्वक अल्प प्रयत्न से उठाया जा सकता है। २) निद्रा-निद्रा __ जिस कर्म के उदय से ऐसी नींद आये कि सोया हुआ मनुष्य बडी मुश्किल से जागे। उसे जगाने के लिए हाथ पकडकर हिलाना पडे, जोर से चिल्लाना पडे या दरवाजा खटखटाना पडे, ऐसी नींद को 'निद्रा-निद्रा' कहते हैं। ऐसी निद्रा जिस कर्म के प्रभाव से आती है, उसे निद्रा-निद्रा दर्शनावरणीय कर्म कहते हैं।
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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